कभी यहाँ तो कभी वहाँ
कभी छाते तो कभी ओझल
ऑख मिचौली का खेल , खेल रहें
कभी आशा जगाते कभी निराशा
बरखा की आस दिलाते तो सब खुश
कुछ पल में छट जातें
धूप - छाँव का खेल खेलते
सबका जिया मोहते
सब टकटकी लगाएं देखते
अब बरसे अब बरसे
हर जीव की आस
हर जीव की प्यास
हर्षाते - बल खाते , इठलाते
बदरा आए
सब हर्षाए।
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