Wednesday, 22 June 2022

कभी-कभी अंजाने भी अपने से

कभी-कभी कुछ अंजाने से भी अपने लगते हैं 
एक छोटा सा काम भी बहुत बडा हो जाता है
अभी कल की ही बात है
मैं डाँक्टर के यहाँ गई थी
चार - पांच घंटे हो गए थे
भूख लग गई थी
शुगर की मरीज हूँ 
अगर नहीं समय पर कुछ खा लूं तो हालत खराब हो जाती है
बैलेन्स जाने लगता है
वैसे तो मैं बिस्किट- पानी लेकर चलती हूँ 
पर कल कुछ ज्यादा ही बारिश थी
हडबडी में लेना भूल गई
पति देव का बड बड चालू था
पुलिस वाले हैं नियम वाले
हमेशा बाहर आने पर भूख - प्यास लगती है
वाशरूम जाना पडता है
खुद पर कंट्रोल नहीं 
मालूम है तब निकलते समय सब लेकर रख लेना चाहिए तब निकलना चाहिए 
अब मैं कहाँ बाहर जाकर बिस्किट की दूकान ढूंढू 
जाकर ले आओ खुद
डाक्टर साहब के आने का समय भी हो गया था
बाहर बारिश भी
अब क्या करूँ 
असमंजस में उठ कर बाहर आई दरवाजे की ओर 
रिसेप्सन काउंटर पर एक युवक बैठा था
शायद रिसेप्सनिश्ट  चली गई थी
वह युवक अक्सर डाॅक्टर के केबिन में रहते हैं 
बी पी और वजन मापने तथा मेडिसिन के बारे में बताने के लिए 
मैंने हिचकिचाहट से कहा
यहाँ कहीं बिस्किट मिलेंगी 
फिर पूछा आपके साथ कोई आया नहीं है क्या
बाहर ही गेट से निकलने पर है
मैने कहा 
हाँ आए तो हैं पर मना कर रहे हैं 
आपका तो पहला ही नंबर है न
फिर कहा , ठीक है 
मैं लेकर आता हूँ 
वह जाने लगा तो मैं पैसे देने लगी
नहीं ले रहा था पर मैंने बीस का नोट जबरदस्ती पकडा दिया
एक तो काम करें ऊपर से अपना ही पैसा भी 
यह तो ठीक नहीं है न
वह गया और मारी बिस्किट ले आया और केबिन के बाहर दिया
इतना अच्छा लगा 
ऐसे भी लोग हैं न तभी गुजारा है
अब उसके लिए तो मुझ बासठ साल की लेडी के मन से आशीष ही मिलेगा न 
थैक्यू क्या बोलना फिर भी
मन से थैंक यू 

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