मैं अपनें बेटे के साथ गांव गई थी
गाँव में शहर के जितनी सुविधा नहीं है और न वैसा खान - पान
वहाँ खरिद कर नहीं खाया जाता
जो खेत में हुआ है उसी में गुजारा करना है।
किसान खरीदता नहीं है
जिसके घर में शहर का कोई है उसी के यहाँ या फिर नौकरी करने वाला
गर्मी के दिन थे । अभी आम बाजार में आने शुरू ही हुए थे।
एक मेरे देवर लगते थे रहते तो अलग थे पर भाईचारा तो बना ही रहता है
आखिर कभी सब एक ही संयुक्त परिवार के हिस्से हुआ करते थे।
उनकी आर्थिक परिस्थिति ठीक-ठाक ही थी कुछ खास नहीं
एक गुमटी बाजार में डाल रखी थी
चार बच्चों का भरण-पोषण
खेत का क्या है , अलग-अलग होने के बाद बचा ही कितना है
परिवार बढे हैं पर खेत वहीं हैं
रात को आठ बज रहे होगे
सायकिल खडी की और पूछा कि बाबू कहाँ हैं
मेरे कहने पर कि वह सो गया है
कहने लगे कि
वोके जगावा । ओकरे खातिर आम लेकर आयल बाटी
सायकिल से थैला उतारा
उनके बच्चे घेर कर खडे थे
आम की फाँक बनाई और उन सब को काटकर दिया
तीन या चार आम ही थे थैला में
मैंने कहा
वह सो गया है अभी उठ कर नहीं खाएगा
तब दो आम दिए और कहा कि सुबह उठे तो दे देना
कहना चाचा लाए हैं तुम्हारे लिए
हमारे लिए वह आम इतना भी खास नहीं था
बच्चे रत्नागिरी के हापुस आम खाते ही हैं सीजन में
पेटी आती है
आम भले खास न हो पर प्रेम खास था
वह प्यार की अपनेपन की भावना
आज वे नहीं हैं
पर आम जब आते हैं या जब गाँव जाती हूँ
तब याद तो जरूर आ जाती है
ऑख भी भर ही आती है ।
प्रेम तो अनमोल है उसका प्रतिदान नहीं होता ।
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