Thursday, 23 June 2022

सत्ता का लालच

कुछ चले गए 
कुछ जा रहे हैं 
जब जुड़े थे तब अपने मन से
हमसे ही पहचान मिली
हमसे ही सफलता के इस शिखर पर पहुँच गए 
हमने तो बुलाया नहीं था 
तब भी स्वार्थ था
आज भी स्वार्थ था
तब दोषारोपण हम पर क्यों 
किसी को कोई जबरन बांधे नहीं रख सकता
तुम तब भी मजबूर न थे
आज भी मजबूर नहीं हो
फिर ऐसा क्या हुआ ??
कहीं सत्ता का लालच तो नहीं 
सत्ता बहुत कुछ कराती है
कुर्सी के खेल निराले हैं 
सब इस पर बैठना चाहते हैं 
हर कोई पैंतरेबाजी करता है
कोई पाता है कोई नहीं 
पर पीठ पर छिप कर वार करना
धोखा देना 
तोहमत लगाना
किसी को नीचे गिराना
जिस सीढी पर चढ कर ऊपर पहुंचे 
उसी को गिरा देना
कहीं ऐसा न हो
जब वापस आना पडे
तब तो सीढी ही न मिले
तब तो लटक गए न 
यहाँ न वहाँ 
न माया मिली न राम 

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