कुछ जा रहे हैं
जब जुड़े थे तब अपने मन से
हमसे ही पहचान मिली
हमसे ही सफलता के इस शिखर पर पहुँच गए
हमने तो बुलाया नहीं था
तब भी स्वार्थ था
आज भी स्वार्थ था
तब दोषारोपण हम पर क्यों
किसी को कोई जबरन बांधे नहीं रख सकता
तुम तब भी मजबूर न थे
आज भी मजबूर नहीं हो
फिर ऐसा क्या हुआ ??
कहीं सत्ता का लालच तो नहीं
सत्ता बहुत कुछ कराती है
कुर्सी के खेल निराले हैं
सब इस पर बैठना चाहते हैं
हर कोई पैंतरेबाजी करता है
कोई पाता है कोई नहीं
पर पीठ पर छिप कर वार करना
धोखा देना
तोहमत लगाना
किसी को नीचे गिराना
जिस सीढी पर चढ कर ऊपर पहुंचे
उसी को गिरा देना
कहीं ऐसा न हो
जब वापस आना पडे
तब तो सीढी ही न मिले
तब तो लटक गए न
यहाँ न वहाँ
न माया मिली न राम
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