जिस लकडी से कुल्हाड़ी बनती है
वह उसी पेड़ की होती है
यानि जहाँ पनपे - बढे
उसी पेड़ का विनाश
यह सही है
प्रकृति का नियम है
कितना भी शक्तिशाली हो
किसी की यहाँ नही चलती
सबको एक दिन जाना ही होता है
पर वह पीडा दायक तब होता है
जब घाव अपनों से मिला होता है
यहाँ सत्ता के लिए
अपने ही जन्मदाता और सहोदर भाईयों की हत्या
सत्ता के लिए ही
महाभारत और रामायण
यदि दुर्योधन जिद पर न अडा होता
यदि महारानी कैकयी अपने भरत के लिए राज्य न मांगती
इतिहास ऐसे न जाने कितने उदाहरण से भरा पडा है
यह सत्ता की कुर्सी किसी की सगी नहीं होती
आज कोई तो कल कोई और
वर्तमान में भारतीय राजनीति इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ।
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