Friday, 29 July 2022

मंहगाई मंहगाई मंहगाई

मंहगाई मंहगाई मंहगाई 
मंहगाई डायन मार गई
यह तो सब भूल गए 
वह तो अभी भी मार रही है 
उस पर तो चर्चा होने से रही
मुद्दा तो दूसरे बन गए
किसने किसको क्या बोला
किसका अपमान किया गया
क्या बोला गया
एक की गलती को सुधारने के लिए वही गलती करना
बडे - छोटे का लिहाज न करना
संसद को अखाड़ बना देना
जनता की समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा 
व्यक्ति गत बातों को प्रधानता
  वाणी को वीणा बनाए बाण नहीं 
  अन्यथा महाभारत तो होती रहेगी
चिल्लाहट - झल्लाहट तो सब खेल उलट 
क्या बात रखोगे क्या सुनेंगे 
जब स्वयं पर काबू नहीं
जबान ही नहीं 
हाथ - पैर सब चल रहे हैं 
मीडिया दिखाए या न दिखाए
समझाए या न समझाए
जनता सब समझ रही है
लोकतंत्र दुनिया का किस तरफ जा रहा है
यह भी महसूस कर रही है
क्योंकि कहीं न कहीं कुसूरवार तो वह भी है
नोटों का भंडार लगा है
इसी जनता के पैसे से
चुनाव के समय थोड़ा लालच दे बहला - फुसला लिया जाता है
उसी को बेवकूफ बना नेतागण उसी के पैसे पर राज कर रहे हैं 
मंहगाई तो सर उठाकर चली आ रही है
उस पर रोक टोक नहीं 
हाँ उसका समाधान का रास्ता नहीं 
जब आपस में लडना ही है तब यह सब तो बेमानी है 

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