Friday, 15 July 2022

गुरू कैसा हो

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः । गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।। अर्थ : गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं । ... अर्थ : जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं, उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ ।
यह तो रही गुरू के प्रति भावना
अब तो यह बात भी है
गुरू कैसा होना चाहिए 
गुरू भी तो ज्ञान का सागर होना चाहिए 
तभी तो वह दे सकेगा 
शिष्य ले सकेंगे 
सीमित औ किताबों में ही 
उसके अलावा और कुछ नहीं 
आज जो अंक आधारित शिक्षा है ये गुरु भी तो उनमें से ही निकल रहे हैं 
जब और कुछ नहीं तब टीचर बन जाओ
स्वेच्छा से इसे स्वीकार करना , कुछ लोग हैं 
सरकारी नौकरी , छुट्टियाँ  , आराम सब दिखाई देता है
यह पेशा खुशी से चुने 
त्याग और समर्पण हो
नहीं तो गुरू भी द्रोणाचार्य जैसा ही होगा
जहाँ मजबूरी वश केवल पांडवो और कौरवों का गुरू बनना पडा
एकलव्य और कर्ण के गुरु नहीं बन सके
गुरू तो निर्माता होता है
निर्माण और विनाश दोनों उसी की गोदी में खेलते हैं 
अर्जुन और दुर्योधन के गुरू एक ही थे
द्रोणाचार्य ने गुरू दक्षिणा भी मांगी तो विद्वेष से भरा
बदले की भावना से
अपने बचपन के मित्र और राजा दुपद्र द्वारा किए अपमान का बदला लेने के लिए 
कारण तो वे भी थे
वे एक ऐसा छिद्र थे हस्तिनापुर की नाव के
जो पूरी नाव को ही डुबा दे
स्वयं का पुत्र अश्वस्थामा  को नैतिकता की शिक्षा न दे सके
आशय यही कि
शिष्य और गुरु दोनों ही योग्य हो
लेने वाला भी देने वाला भी। 

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