किस्मत कभी साथ चलती है कभी नहीं
कभी उतार कभी चढाव
कभी नरम कभी गरम
इसमें पता नहीं क्या - क्या लिखा है
हाथों की लकीरों से
माथे की बनावट से
ग्रहों की चाल से
अंदाजा लगाया जाता है
सब कुछ तो जन्म से निश्चित है
जो होना है वह होगा ही
फिर भी ज्योतिषियों के चक्कर में पडे रहते हैं
उसके बताए कर्मकांड करते रहते हैं
जब जो होना है वह होगा ही
तब हम जानना क्या चाहते हैं
भाग्यरेखा को बदल तो नहीं सकते
तभी तो हीरा कीचड़ में पडा रहता है
पीतल से मुकुट सजता है
गुणों की कदर नहीं
भाग्य चाहे तो ऊपर आसीन कर दें
न चाहे तो भीख भी न मिले
कर्म है हमारे हाथ में
पर वह भी तभी साथ देता है
जब भाग्य हो
किस्मत का लिखा कोई नहीं टाल सकता
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