ताउम्र जूझती रहीं
कुछ न कुछ समस्याएं आती रही
वह बाधाएं भी पार होती गयी
लेकिन उन बाधाओं में
मैं बंध कर रह गयी
कभी सोचने का मौका ही न मिला अपने लिए
कभी यह कभी वह
उन सब में उलझ कर रह गयी
कहाँ से शुरू कहाँ खतम
यह पता ही नहीं
यह सिलसिला अनवरत जारी है
अब महसूस होता है
यह मेरी सोच है दूसरों की नहीं
फिर भी यह समझ नहीं आया अब तक
मैं सही हूँ या वे सही हैं
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