आंटी और अंकल के चक्कर में
उलझ गए हैं हम
सारे रिश्ते गुम
बस सबका एक ही रिश्ता
चाची , काकी ,मामी, बुआ
चाचा , मामा , फूफा , मौसा
सिमट कर रह गए हैं
आंटी और अंकल के मायाजाल में
अंग्रेजी बोलने के चक्कर में
रिश्तों के नाम की बलि चढा दी हमने
कितनी मिठास
कितना प्यार
झलकता था
पापा का भाई चाचा
माँ का भाई मामा
फूफा और मौसा भी अपने
अपनापन और प्यार
हक से अधिकार से
अब तो सब अंकल और आंटी
भईया - भाभी
दादा - दादी
काका - काकी
का भी संबोधन हुआ लुप्त
अब तो छोटा हो या बडा
सब है अंकल - आंटी
कभी-कभी नागवार भी गुजरता है
जब अपने से उम्र दराज व्यक्ति आंटी और अंकल कहता है
हम उम्र को भी संबोधते हैं
तब खीझ और गुस्सा आ जाता है
अब किसको रोके
किसको टोके
किसको समझाए
जब अंकल - आंटी का है बोलबाला
सुनते रहिए
पसंद आए या न आए
बस सुन कर अनदेखा करिए
या फिर निगलते रहिए
टोकमटाकी कर क्या हासिल
जब जमाना ही है अंकल - आंटी का पक्षधर
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