इन्हीं के द्वारा हम समझ सकते हैं
विचार - विमर्श कर सकते हैं
भावनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं
मान लीजिए
भाषा न हो तब
भावना तो होती है
आज भी है
पहले भी थी
भावना समझना पडता है
मन के भीतर झांकना पडता है
आवाज मीठी हो या कर्कश हो
धीमी हो या तेज हो
भाषाओं का मुलम्मा चढा हो
आलंकारिक भाषा हो
वह ज्यादा देर तक नहीं चलती
भावना सच्ची हो अच्छी हो
वह हमेशा के लिए प्रभावी होती है
भाषा से ज्यादा भावना से जुड़े
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