सुख और दुख में
होता है फर्क
भाग्य और कर्म में
होता है फर्क
अपनों और परायों में
होता है फर्क
विश्वास और अविश्वास में
होता है फर्क
प्रेम और घृणा में
होता है फर्क
रक्त और पानी में
होता है फर्क
अमृत और विष में
होता है फर्क
आशा और निराशा में
होता है फर्क
झूठ और सच में
होता है फर्क
धूप और छांव में
होता है फर्क
ईमानदारी और बेईमानी में
होता है फर्क
अमीरी और गरीबी में
होता है फर्क
गर्मी और बारिश में
होता है फर्क
घर और बेघर में
होता है फर्क
समृद्धि और कंगाली में
होता है फर्क
संतोष और असंतोष में
तब कहा जाएं
हर परिस्थिति में तटस्थ रहो
यह तो संभव ही नहीं
कम से कम साधारण इंसान के लिए तो नहीं
साधु और महात्मा के लिए होता होगा
एक गृहस्थ के लिए तो बिलकुल नहीं
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