Thursday, 8 September 2022

घर भी अकेला है

सुने घर राह देखते हैं 
बंद दरवाजे बुलाते हैं 
यही वह घर है जहाँ 
किलकारियां गूंजती थी
गली गुलजार रहती थी
आज वे घर तो हैं 
उसमें बसने वाले नहीं हैं 
या तो बंद पडे हैं 
द्वार पर बडा सा ताला लटका है
या घर में एकाध बडा - बूढा हो
लोग चले गए हैं 
विकास की राह पर 
कुछ महानगरों में 
कुछ विदेशों में 
पंछी के बच्चे उड गए हैं 
अब तो उनको यह याद भी नहीं आता
न आने का मन करता है 
आना भी होता है तो मजबूरी वश 
बाप - दादो की प्रापर्टी है 
उसको ऐसे कैसे छोड़ दे 
कुछ घर सूनसान 
कुछ ढहने की कगार पर
आज व्यक्ति ही नहीं 
घर भी अकेलेपन की समस्या से ग्रस्त 
आखिर घर वह होता है
जिसमें लोग रहते हैं 
सुख - दुख बांटते हैं 
व्यक्ति वाद सब पर हावी 

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