बंद दरवाजे बुलाते हैं
यही वह घर है जहाँ
किलकारियां गूंजती थी
गली गुलजार रहती थी
आज वे घर तो हैं
उसमें बसने वाले नहीं हैं
या तो बंद पडे हैं
द्वार पर बडा सा ताला लटका है
या घर में एकाध बडा - बूढा हो
लोग चले गए हैं
विकास की राह पर
कुछ महानगरों में
कुछ विदेशों में
पंछी के बच्चे उड गए हैं
अब तो उनको यह याद भी नहीं आता
न आने का मन करता है
आना भी होता है तो मजबूरी वश
बाप - दादो की प्रापर्टी है
उसको ऐसे कैसे छोड़ दे
कुछ घर सूनसान
कुछ ढहने की कगार पर
आज व्यक्ति ही नहीं
घर भी अकेलेपन की समस्या से ग्रस्त
आखिर घर वह होता है
जिसमें लोग रहते हैं
सुख - दुख बांटते हैं
व्यक्ति वाद सब पर हावी
No comments:
Post a Comment