कोई सहूर नहीं
कैसे रहा जाता है
कैसे बोला जाता है
कैसे हंसना जाता है
कैसे खाया जाता है
यह तो हुई व्यक्तित्व की खामी
अब आई कर्म की बारी
रोटी भी गोल बेलना नहीं आता
आटा भी नर्म गूथना नहीं आता
सब्जी भी बारीक काटने नहीं आती
नमक , मसाले और तेल का अंदाज नहीं
घर संवारना - सजाना नहीं आता
सीना - काढना , बुनना नहीं आता
गाना - बजाना नहीं आता
खरीदारी करनी नहीं आती
तब आता क्या है
पढ - लिखकर बेवकूफ
सर्व गुण संपन्न आखिर कैसे कोई हो
उसमें बावर्ची, दर्जी , गायक, नर्तकी सब गुण हो
सबमें पारंगत हो
यह तो बिरलो में ही मिलता होगा
अगर ऐसे हैं लोग
तब तो उनको सलाम
उनको मुबारक
हम तो कम से कम ऐसे नहीं है
न कभी हो सकते हैं ।
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