ज्यादा नहीं फर्क है
बस एक अ आ गया है
यही फर्क तो सब बदल डालता है
जहाँ सफलता के साथ जश्न का माहौल
सभी साथ हो लेते हैं
वाह-वाही प्रशंसा के ढेर लग जाते हैं
अंजाने भी पास आने लगते हैं
वही असफलता की बात तो
वह भीड़ में भी अकेले पड जाती है
कोई उसके साथ नहीं चलता
सब देखकर मुंह मोड़ लेते हैं
दूरी बनाने लगते हैं
ताने औ, व्यंग्य की बरसात
अपने भी अजनबी से
यही तो गलती हो जाती है
यह लोग भूल जाते हैं
असफलता , सफलता की पहली सीढ़ी है
बशर्ते हार न मानी जाएं
तब निराश क्यों??
सुख के साथी तो सब
दुख के न कोय
एकला चलो के मंत्र को धारण करें
चल निकले फतह पर
असफल से सफल होने में बस एक अ ही तो है
उसे मिटा डालिए।
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