हर सुख दुख में साथ रहता
कुछ कमी भी है
उस पर ध्यान नहीं जाता
कभी भी बेवजह घर पर आ धमकता है
घंटों सोफे पर बैठा आराम फरमाता है
मेरे घर को अपना ही घर समझता है
खाना - पीना , चाय - पानी भी अधिकतर यही
यह सब तो ठीक है
बुरा तो तब लगा
जब हमारे घर की बातें बाहर करने लगा
कहने को तो अपना खास
पर अब डर लगने लगा है
अब तो मुझसे ईष्या भी होने लगी है
हमेशा ताने
अरे तू तो बडे बाप का बेटा है
तेरा क्या ??
अब लगता है
उसको आईना दिखा दू
उससे थोडा दूरी बना लूँ
नहीं तो हालत
सांप को दूध पिलाने जैसी हो जाएंगी
अब वह पहले जैसा नहीं रहा
तब मुझे भी बदलना पडेगा
ताली एक हाथ से तो बजती नहीं है
उसका मन बदल गया
तब मुझे भी बदलना होगा
दोस्त अब वह दोस्त नहीं रहा ।
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