Tuesday, 20 September 2022

समय का चक्र

क्या आपको सुनाई नहीं पड रहा
आपकी तबियत तो हमेशा खराब ही रहती है
जब देखो फालतू प्रश्न पूछती रहती हो
चुपचाप बैठो एक जगह
कुछ काम धंधा तो है नहीं
क्या मीन मेख निकालती रहती हो
क्या इधर-उधर डोलती हो
हर बात जानना है
क्या करना है जानकर
बूढे हो गए हैं 
जो खाना मिल रहा है
जो साथ में रख रहे हैं
यह उपकार कर रहे हैं

यह हर घर में सुनाई देता है
जहाँ बुजुर्ग हो
अचानक घर अंजान हो जाता है
सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं
जो उनके आसपास डोलते रहते थे
अब पास भी फटकना नहीं चाहते
जो नित नये खाने की फरमाइश करते थे
आज खाना देना भी एक उपकार समान समझते हैं
जिसने देखभाल की
इस लायक बनाया
उसी की देखभाल करना बोझ समझते हैं

समय कितनी तीव्रता से बदलता है
प्रकृति का यही नियम है
आज वे हैं
कल हम उनकी जगह होंगे
सदियों से यही चला आ रहा है
उदयाचल के सूर्य को संझा समय अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
सुबह प्रणाम और जल
और संझा को अनदेखा 
उसकी प्रतीक्षा कब ये जाए
पहले वानप्रस्थ था
आज वृद्धाआश्रम है
बात वही है जो उस समय थी
दोष तो किसी का नहीं
बस समय का है
समय न किसके लिए रूकता है
न थमता है
उसे भी तो आगे बढना है
शिशु का स्वागत 
वृद्ध का अनदेखा
यह तो स्वाभाविक है
न तुम दोषी न हम दोषी
कभी उस जगह पर आप थे आज हम है
बस पात्र बदल गए हैं

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