जीती - जागती व्यक्ति
उसका अपना व्यक्तित्व
उसका अपना वजूद
वह गुडिया नहीं होती
हाड मांस से बनी इंसान होती है
जिसके कुछ सपने
कुछ इच्छाएं- आकांक्षाए होती है
तब भी वह सब न्योछावर कर देती है
प्रेम पर कर्तव्य पर
तुम जितना दोगे वह उससे दस गुना करके देंगी
वह माँ होती है
ममता से लबालब होती है
पत्नी होती है
जो घर को संवार देती है
घर को क्या
पूरे परिवार की जिंदगी संवार देती है
बस इसके बदले
थोड़ा सा प्रेम
थोड़ा सा सम्मान
थोड़ा सा अपनापन चाहती है
वह स्वयं भूखे रह जाती है
पर घर के सदस्यों का पेट भरती है
कम से कम जो वह चाहती है
उसके काम के बदले वह बहुत कम है
उसका कोई मोल नहीं वह अनमोल है
औरत , औरत होती है
न वस्तु न जीती - जागती गुडिया
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