एक शक्ति स्वरूपा है
अपनी संतान की ताकत
हर परिस्थिति में लडना सिखाती
नहीं मानती हार
जिद्दोजहद पर आ जाती
साथ खडी रहती
डांटती- फटकारती वह
तो दुलारती भी वही
उससे ज्यादा कौन समझेगा
जो माँ का दिल समझे
उसकी मार में भी प्यार
चोट संतान को लगती है
दुखी वह होती है
मन मसोसकर रह जाती है
जब वह बेबस हो जाती है
भाग्य के आगे विवश हो जाती है
वह परिस्थिति से तो लड सकती है
भाग्य से नहीं
क्योंकि वह ईश्वर के समकक्ष तो है
शायद उनसे भी बडी
एक दर्जा ऊपर
तब भी सत्य तो यही है
वह ईश्वर नहीं है
हाड- मांस की इंसान है
गलती भी कर सकती है
पर संतान का बुरा नहीं सोच सकती
किसी भी हाल में
उसकी ममता में कमी नहीं
माँ मजबूर हो सकती है
स्वार्थी नहीं ।
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