मेरा प्रतिरूप
उसकी हर बात है न्यारी
मैं उसको क्या सिखाऊ
वहीं मुझे बहुत कुछ सिखाएं
बात करने का लहजा
कपडे पहनने का तरीका
आत्मविश्वास जगाती वह मुझमें
मुझे जब अंग्रेजी न आने का गिला
तब वह मेरी हिंदी की सराहना करती
बात - बात पर डांटती
जैसे मैं न हुई उसकी माँ
वही बताती क्या करूँ , कैसे करूँ
हर पल साथ निभाती
सखी से लेकर जीवनसाथी तक का हर रोल निभाती
मन ही मन मैं इतराती
अपनी पीठ थपथपाती
अपनी परवरिश पर गर्व होता
नहीं हार मानने वालों में
भाग्य को भी धता बताने वाली
वर्कोहलिक कहती मैं कभी-कभी
वह साथ तो मैं निश्चिंत
हर अच्छे- बुरे वक्त में साथ
बेटा - बेटा कहते लोग
मेरी बेटी , बेटे पर है भारी
आत्मनिर्भर बनी छुटपन से
सब कुछ संभाला
निस्वार्थ और सेवा भाव से
अपनेपन को सदा निभाया
कभी पराया नहीं माना
वह सगा हो या कजिन
मुझे भी वही सीख देती रही
मैं तो हूँ थोड़ी सी स्वार्थी
हाँ वह नहीं
मैं कैकयी तो वह मेरी भरत
माँ क्या करें
बस बेटी के लिए दुआ करें
किसी और लायक तो नहीं
डरपोक, मजबूरी है कुछ
शायद हर बेटी वाले का यही हाल
बेटा कुछ न करें तब भी अनमोल
सही है वंश का दीपक है वह
बेटी तो वह बाती है
जो जलती है
रोशनी फैलाती है
पूरा घर रोशन हो जाता है
तभी तो बेटी तो बेटी ही है
कहने को तो परायी
होती अपनी है ।
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