Thursday, 20 October 2022

कृष्ण --22

अथवा बहुनैतेन कि ज्ञातेन तवार्जुन  ।
विष्टभ्याहमिदं  कृत्स्न्नमेकांशेन स्थितो जगत्  ।।

किंतु हे अर्जुन! 
इस सारे विशद ज्ञान की आवश्यकता क्या है ?
मैं तो अपने एक अंश मात्र से संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर इसको धारण करता हूँ  ।

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