नाज नखरों का दौर शुरू हुआ
सुबह से ही मनुहार
सरगी के साथ जो शुरू हुआ
पूरा दिन उसी में लगा रहा
तैयारियां तो हफ्ते भर से
मैं श्रीमती जी के पीछे-पीछे
बस दाम की बात होती
तब श्रीमती जी देखती और इशारे करती
मैं भुगतान कर देता
यह तो भुगतना ही है जो लंबी आयु जीना है
गिफ्ट भी देनी है
उसका भी बजट बनाना है
कुछ ऐसे वैसा दे नहीं सकते
अनमोल जीवन के बदले मूल्यवान उपहार
वह भी हो गया
अब आई संझा की बारी
चांद देखना है
मैं सब काम - धाम छोड़ फिर पीछे हो लिया
अब इंतजार है चांद का
वो चांद देखे जा रही मैं उनको देखे जा रहा
वाकई गजब की है यह रात
आखिर जल ग्रहण किया उन्होंने
तब मेरी जान में जान आई
सुबह से आफत में फंसी जान
अब छुटकारा मिला
उम्र लंबी हुई या नहीं
पर यह दिन बहुत लंबा हो गया
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