Sunday, 2 October 2022

पंख मेरे भी थे

पंख मेरे भी थे
उडान भरने की मैंने भी ठानी थी
उडान भरी भी
उस उडान भरने के दरम्यान बहुत कुछ हुआ
असतित्व बनाने के चक्कर में असतित्व ही खत्म होता गया
मैं वह न रही जो वास्तव में थी
बहुत कुछ खोना पडा
ऊपर से यह सुनना पडा
तुमको करने की छूट दी
यानि पिंजरे में बंद तो ठीक
खोला तब भी एक एहसान 
इसका लाभ मुझे क्या हुआ 
भागम-भाग करती रही
जिम्मेदारी निभाती गई
मैं समझी कि
मैं सही जा रही हूँ 
नाम बना रही हूँ 
नाम क्या बना
इस नाम के चक्कर में एक बोझ ओढ लिया 
गलत हुआ या सही हुआ 
सबका कारण मैं 
एहसास होता है
कभी-कभी पिंजरे में बंद होना ही अच्छा है
मनपसंद पेरू - मिर्च मिलेगी 
सबका ध्यान रहेगा
सब प्यार करेंगे
फालतू के झंझट में क्यों पडना 

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