तलाश में
एक अदद नौकरी
अपना एक फ्लैट
ऐशो-आराम
बच्चों की अच्छी शिक्षा
तलाश तो पूरी हुई
सब कुछ मिला
पर कहीं पीछे कुछ छूट गया
यहाँ अकेले रह गए
फ्लैट की चहारदीवारी में उलझ कर
मशीन जैसी जिंदगी
आधी जिंदगी तो सफर में
सुबह निकले तो रात को पहुँचे
अब सब जिम्मेदारी खत्म हो गई है
तब सोचते हैं
चलो चला जाएं फिर वहीं
गाँव की पगडंडियों पर
सुकून से दुआर पर बैठा जाएं
मिल जुलकर बतियाया जाएं
पर क्या वह गांव रह गया है
जो बरसों छोड़ आए थे
वहाँ की आबो-हवा में भी तो शहरीपन आ गया है
अब वहां चौपाले नहीं सजती
ऐसा न हो कि
वापस लौटने पर फिर पछतावा हो
मकडजाल में उलझा हुआ आदमी
उलझता ही जाता है
विकास की आंधी सबको ध्वस्त कर देती है
गाँव क्या बहुत कुछ छूट जाता है
रोजी रोटी के चक्कर में
बैठे तो भोजन कहीं नहीं मिलने वाला
वह गांव हो या शहर
तो भैया
जहाँ है वहीं ठीक हैं
चार दिन की जिंदगी
इतनी उठा पटक की क्या जरूरत।
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