Thursday, 27 October 2022

हम भार हो गए

बच्चों की जिंदगी संवारने में 
उनकी आरजू पूरी करने में सब कुछ लगा दिया
सबसे प्यारी जिंदगी को भी दांव पर 
न अपनी इच्छा न आकाक्षा 
न शौक न पर्यटन 
तब भी खुश रहें 
लगा कुछ सार्थक कर रहें 
पर वह एक धारणा थी जो सर्वथा गलत थी
जन्मते ही हर बच्चा अपना भाग्य लेकर आता है
हमने क्या किया 
क्या हिसाब किताब करें 
जिनकी आरजू पूरी करते रहें 
आज उन्होंने ही हमें लावारिस कर दिया
जिनके लिए घर बनाया
उन्होंने आज हमें घर से बेदखल कर दिया
हमें वृद्धाआश्रम में लाकर छोड़ दिया
जिनके खान - पान की हमने परवाह की
उन्हें हमें पेट भर खाना भी देना भारी लगा
हमने कभी मंहगाई की परवाह न की
अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर कुछ दिया
उन्हें ही हम महंगे लगने लगे
हमारी साधारण जरूरते भी भारी लगने लगी
जिनको गोद में लेकर भी हमें वह कभी भारी न लगें 
उन्हीं के लिए हम भार हो गए ।

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