समाज के द्वारा स्वीकृति है
आज यह राज केवल विभिषण को ही नहीं
सभी को पता है
सब ऑख - मुख बंद कर बैठे हैं
किसी में प्रतिकार की शक्ति नहीं है
जटायु जैसा एकाध है भी तो उसका सर्वनाश निश्चित है
राम भी तो नहीं है
न लक्षमण है
न जाने कितनी सुपर्णखा घूम रही है उनको दंडित करने वाला कोई नहीं
मारीच मायावी वेष धारण कर लोगों को ठग रहे हैं
सोने के मृग के वेष में भेड़िए की खाल धारण किए
कुंभकर्ण को कुछ पता ही नहीं वह तो आराम से सो रहा है
आज के विभिषण असहाय है
क्योंकि राम जी नहीं है
तब कौन तारणहार बनेगा ।
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