आए दिन गैंगरेप की खबरें
या तो वे ही मार डालते हैं
या फिर आत्महत्या
क्या करें पीडिता
वह तो जीते जी मार डाली जाती है
समाज की नजरों में वह कहीं की नहीं रहती
यद्यपि उसका दोष नहीं
पर हमारे समाज की सोच ही ऐसी है
वह तो उसका घर से बाहर निकलना दूभर कर देंगे
जिसको न भी बोलना हो
जो उसके बारे में न जानता हो
ऐसे चटखारे लेकर बताएँगे
सहानुभूति के नाम पर कि पूछो मत
कहाँ भाग कर जाएं
वैसे नाम उजागर नहीं करना है
तब भी यह बात कहाँ छुपी रहती है
बलात्कारी आराम से रहते हैं
कभी-कभी यह राजनीतिक रूप भी धर लेता है
किसी नेता को इन पर दया आ जाती है
उनकी नजर में वे बच्चे हैं जिनसे गलतियाँ हो जाती है
यह कैसी गलती
जिससे किसी का पूरा जीवन तबाह
उसका परिवार दागदार
एक - दो पीढी तक यह कथा चलेगी
इनके यहाँ ऐसा हुआ था
तभी तो डर के मारे चुप रह जाती है लडकियाॅ
उसके बेबस घर वाले
प्रार्थना करनी पडती है
इस मुद्दे को ज्यादा न घसीटो
पत्रकारों का जमावड़ा
न जाने कैसे कैसे सवाल
एक तो यह दर्द और पीड़ा
उस पर ऐसा माहौल
मरे न तो करें क्या
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