Friday, 7 October 2022

बर्तनों का संगीत

संगीत केवल वीणा और बांसुरी से ही नहीं 
घर के बर्तनों से भी सुनाई देती है
वह उतनी सुमधुर भले न हो
सबको प्यारी जरूर होती है
उसका नाता पेट और भूख से होता है
सुबह से ही जो उठा पटक होती है
तब जान पडता है
कुछ मिलने वाला है
बर्तनों की शांति अच्छी नहीं लगती
सुबह से यह ध्वनि जो शुरू होती है
देर रात तक
कभी कलछी बोलती है कभी सडसी 
कभी पतीला तो कभी कडाही 
तवे और चिमटे की अपनी धुन
ऊपर से कुकर की सीटी सचेत करती हुई 
इनकी खटर पटर से ही रसोईघर में जीवंतता 
गृहणी खुश है या नाराज
गुस्से में है 
इसका पता भी चलता है
हर बर्तन की अपनी विशिष्टता 
एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता
चकला - बेलन , छुरी - कांटा 
पतीला - ढकना , थाली- परात
कटोरी - ग्लास , कप - बसी
कुकर- मिक्सर , सील - बट्टा 
भगोना- देगची इत्यादि 
हर चीज की जरूरत 
तभी खाना बनता है
वह पेट भरता है
स्वादिष्ट होता है
घर भर को एक टेबल पर बैठाता है
प्रेम और बातों का आदान-प्रदान होता है
बर्तनों का अपना एक संसार 
अपनी एक ध्वनी 
वह कभी कर्कश नहीं होता
संगीत केवल वीणा और बांसुरी से ही नहीं 
घर के बर्तनों से भी सुनाई देती है 

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