संयुक्त परिवार
बहुत बडा
हर दिन कोई न कोई झमेला
छोटी-छोटी बातों पर बखेडा
शुरुआत अंदर घर की औरतों से
कभी काम को लेकर
कभी बच्चों को लेकर
आग लग चुकी थी
उसका धुआं धीरे-धीरे बाहर पुरूषों तक पहुंच गई थी
फिर अलगाव की प्रक्रिया शुरू हुई
आखिरकर वह दिन आ ही गया
घर बंट गए
सबके चूल्हे अलग-अलग
बीच में दीवार
यही तक नहीं रहा
हम रोज विभाजित होते रहें
पल पल सब याद आते रहें
वह साथ में त्यौहार मनाना
हंसना - खिलखिलाना
खाना - पीना
मौज - मजा करना
लाड - दुलार , नाज - नखरे
सब छूट गए
यहाँ तक कि आशीर्वाद और प्यार भी
एक द्वेष की लकीर दिलों में
घर ही नहीं परिवार ही नहीं
लोगों के मन भी विभाजित हुआ था
उसकी कसक अभी तक है
ख्याल आता है
साथ सब होते
काश विभाजन नहीं होता ।
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