बाप का दिल नहीं पसीजता
वह तो इज्जत की दुहाई देता है
समाज का ख्याल करता है
लोग क्या कहेंगे
यही सोच डरता है
बेटी को प्यार तो करता है
उसकी बात नहीं मानता
न वह समझता है
न समझना चाहता है
माँ तो बेचारी लाचार
करें तो क्या करें
धमकी देता है छोडने की
इसी ऊहापोह में सब रहते हैं
न खुशी से जीते हैं
न किसी को जीने देते है
समाज जो किसी काम नहीं आता
हंसने के सिवाय
उसी के कारण अपनी बेटी की खुशियों का गला घोटता है
यह किसी एक घर की कहानी नहीं
अमूनन हर घर की कहानी है
विकास की बात केवल किताबों में
मानसिकता तो वैसी की वैसी है
बदलना नहीं है
इस का परिणाम
इसका अंजाम
कभी अच्छा तो कभी बुरा
सहना औरत को ही है
कभी बेटी कभी पत्नी के रूप में
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