मैं नारी हूँ
इसीलिए तो बेचारी हूँ
मैं माॅ हूँ
इसीलिए तो शक्तिशाली हूँ
मैं पत्नी हूँ
तभी तो सहनशील हूँ
मैं ममता की मूर्ति
मैं सती - सावित्री
मैं वीरागंना
मैं गृहिणी
मैं तो गृहस्थी की धुरी हूँ
संसार का बोझ लेकर चलती हूँ
फिर भी ऊफ नहीं करती हूँ
मुझे मालूम है
मैं क्या हूँ
मुझे अपनी शक्ति का अंदाजा है
मेरे बिना तो एक घर - परिवार भी व्यवस्थित नहीं चल सकता
संसार की बात ही अलग
मैं सब बर्दाश्त कर लेती हूँ
परिवार के हर व्यक्ति के नखरे उठा लेती हूँ
उनका सारा गुस्सा - खीझ अपने में समा लेती हूँ
जब नौ महीने गर्भ में बोझ उठा सकती हूँ
तब यह सब तो कुछ भी नहीं
मैं बेचारी तो हूँ
पर मेरे बिना घर नहीं चलता
सबकी अपेक्षा मुझसे ही
मैं वह नीलकंठ हूँ
जो विष का घूंट धारण कर गले तक ही रखती हूँ
अपने परिवार पर उसके छींटे भी नहीं पडने देती
मैं बेटी हूँ
मैं बहन हूँ
मैं पत्नी हूँ
मैं बहू हूँ
मैं माॅ हूँ
तभी बेचारी हूँ
व्यक्ति तो बाद में
सबसे पहले इतनी सारी भूमिका निभाना है
तब तो बेचारी ही बनना है
नहीं तो दूसरे बेचारे बन जाएगे
वह मुझे स्वीकार नहीं
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