Friday, 25 November 2022

ये ऑखें

कमलनयनी,  कजरारे नैन
काजल से भरी ऑखें 
नशीली ऑखें 
मृगनयनी 
बडी बडी ऑखें 
पनियाली ऑखें 
बहुत प्रकार है
साहित्य भरा पडा है
ऑखों को तो सबने देखा
उन ऑखों के पानी को नहीं 
उनकी पीड़ा को नहीं 
छलकती ऑखों के अंतरतम में नहीं झाँका 
न जाने कितनी पीडा समेटी हुई है ऑखें 
ऐसे ही नहीं बरसती है असमय 
बोल नहीं पाती है
तब ऑसू बन कर बाहर आती है
उन ऑसूओं का मोल क्या लगाया जा सकता है
नारी रोती ही नहीं 
बहुत कुछ कह जाती है
बिना बोले ही
यह ऑखें प्यार और पीडा 
खुशी और गम व्यक्त कर जाती है 
यह कमबख्त ऑसू ही है
जो कभी खत्म नहीं होते
पलकों के पीछे छिपे ये ऑसू 
बहुत अनमोल है
इनको ऐसा ही सहेज रखें 
यही तो पहचान है 
यही तो संपत्ति है नारी की ।

No comments:

Post a Comment