Friday, 23 December 2022

साडी तो साडी है-- साडी डे

साडी तो साडी है
शोभती हर नारी पर
उस बिना हर भारतीय नारी अधूरी है
सौंदर्य पर चार चांद लगाती
सबमें अपनी पहचान बनाती 
हर नारी पर खूब फब्ती 
वह बूढी हो या नवयौवना 
कुंवारी हो या विवाहित
पतली हो या मोटी
लंबी हो या छोटी 
काली हो या गोरी
सब पर सजती
जब यह सब उसको धारण करती 
परंपरा- संस्कृति की पहचान है
पांच गज में यह न जाने क्या-क्या लपेटती 
अपने साथ न जाने क्या-क्या यादें लाती
कब पहली बार पहना था
कब पैर उसमें उलझा था
कब शीशे के सामने पहन इतराया था 
शर्म- हया से लाल होकर ऑचल को समेटा था
कितनी प्यारी खूबसूरत है जेहन में 
साडी तो साडी है
सबसे निराली है
सबकी प्यारी है
खासमखास है
हर मौके की जान और शान है
कवि की कविता है
माँ का ऑचल है
सारी की सारी औरत को लपेटे यह साडी है ।

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