Wednesday, 8 March 2023

माता तू सबसे महान

जीवन का आरम्भ ही मुझसे हैं 
जीवन का निर्माण मेरी ही कोख में 
दुग्धदायिनी हूँ,  जीवनदायिनी हूँ 
मेरी ही गोदी में जीवन खेलता है
मैं धरा हूँ 
सबका भार उठाती हूँ 
सब कुछ सहती हूँ 
अपना सब कुछ न्योछावर करती हूँ 
सारा प्रेम लुटाती हूँ 
हर नादानी सहती हूँ 
उन्नति के पथ पर अग्रसर करती हूँ 
उनको लहलहाते देख वारी जाती हूँ 
मेरी खुशी तो बच्चों की खुशी में ही है 
हाँ यह चाहती हूँ 
वे अनुशासित हो
सबके बदले बस
थोड़ा सा प्यार 
थोड़ा सा सम्मान 
भरपूर विश्वास 
इतना कि 
संतान कहें 
यह मेरी माँ है
इस पर मुझे गर्व है
उसकी परवरिश पर मुझे गर्व है 
आज मैं जो कुछ भी हूँ 
इसी की बदौलत 
यह माता है 
पुत्र कुपुत्र भले हो
      माता कुमाता हो ही नहीं सकती
मैथिली शरण गुप्त जी ने 
अपनी रचना साकेत में  स्वयं प्रभु राम से कहलवाया है
सच भी तो है
धन्य धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना  भरत सा भाई 
भरत जैसे बेटे को जन्म देनेवाली माँ कुमाता कैसे हो सकती थी 
अगर कैकयी कुमाता होती तो भरत अच्छे भ्राता न होते
जिनकी दुहाई आज तक दी जाती है 
भरत- राम के प्रेम की
माँ भी व्यक्ति है 
विवश हो सकती है
गलती कर सकती है
पर अपनी संतान का बुरा नहीं सोच सकती 
वह ईश्वर तो नहीं है पर ईश्वर के समकक्ष जरूर है
तभी तो माँ बनाया है 
ईश्वर को तो नहीं देख सकते
माँ को देख सकते हैं 
जिसकी ममता के ऑचल में सुकून मिलता है
सारा संसार भले दुत्कारे, धिक्कारे 
माँ कभी नहीं 
उसे तो सर्वोपरि अपनी संतान ही दिखती है 
हे माँ हे जननी 
     तेरा उपकार अपरम्पार 
     तेरा प्यार रहें बरकरार 
     सर पर तेरा हाथ हो
     यही दुआ बारम्बार 
     माता तू सबसे महान 

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