अब न सहेगे
बहुत सहेजा
अब न सहेजेगे
बहुत सुना
अब न सुनेंगे
बहुत रिश्ते निभाया
अब न निभाएगे
बहुत प्रताड़ित हुए
डांट- मार खाई
अपमान सहा
मजाक उडा
तब भी सब कर्तव्य निभाया
यही सोच कर
ये सब तो अपने हैं
अपनों से क्या गिला- शिकवा
जो हुआ वह भूल जाओ
यह सब तो होता ही रहता है
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएंगा
सब पटरी पर आ जाएंगा
मन खुशी और उमंगों से लहराएगा
इसी आशा में सबको पकड़ कर रखा
हर परिस्थिति को मात दिया
तब भी आज ऐसे लगता है
हालात जस के तस हैं
कोई नहीं बदला
बस हम बदलते रहें
अपने मन को समझाते रहें
कब तक यह मन भी समझेगा
वह भी थक चुका है
अकेला कोई क्या करेंगा
घर - परिवार, रिश्ते, प्रेम से बनते हैं
कुछ भूलना कुछ अनदेखा कुछ माफी की दरकार होती है
सब की साझेदारी और भागीदारी होती है
सारी जिम्मेदारी केवल घर की गृहिणी पर नहीं
सब की बराबर होती है
अगर यह नहीं तो बराबरी का अधिकार भी नहीं ।
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