पेड़ों की भी अपनी भाषा होती है
संवेदना होती है
गम और खुशी का माहौल उन्हें भी एहसास होता है
वो भी झूमते हैं
उन पर भी समय का असर होता है
कभी पतझड़ तो कभी वसंत
बालपन से वृद्धावस्था का सफर उनका भी होता है
उन्हें भी संरक्षण, देखरेख की जरूरत होती है
अगर सब उचित मिला तो वे भी विकास करते हैं
ऊचाईयां नापते हैं
नहीं तो वे भी बौने रह जाते हैं
सूख जाते हैं
खाद - पानी मिलता रहें उचित मात्रा में
सूर्य का प्रकाश मिले
शुद्ध हवा मिले
तब देखो उनका निखार
ऐसा नहीं कि उन पर परेशानी नहीं
तपन , ठंड , तूफान , अंधड का सामना उन्हें भी करना पडता है
उनके ऊपर भी कुछ लोगों की दृष्टि रहती है काटने के लिए
फिर भी वृक्ष अपना सब कुछ देता रहता है
बांटने में कोई कोताही नहीं करता
वृक्ष बनना भी आसान नहीं
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