हमारे यहाँ भी
गुरु की परम्परा रही है
सर्वोच्च पद उसका
नोबल प्रोफेसन माना जाता है
संसार के जितने भी महान लोग हुए हैं
ज्यादातर लोगों ने कभी न कभी शिक्षक का काम जरूर किया है
आइ टी और टेक्नोलॉजी के युग में यह धारणा बदली है
किसी को मैंने यह कहते सुना
ज्यादा बुद्धिमान नहीं थी
इसलिए टीचर के जाॅब में भेज दिया
अरे जब शिक्षक के प्रति यह सोच रहेंगी
तो सोच लो
कैसा भविष्य निर्माण होगा
गुरू ही ज्ञानी न हो
जानकार न हो
मजबूरी में यह प्रोफेसन अपनाया हो
तब तो ऐसे लोगों का आना ठीक नहीं है
महज सरकारी नौकरी और पैसे के लिए
आज इसका उदाहरण दिख भी रहा है
गुरु को तो पहले अपने को अपडेट करना चाहिए
समय समय पर सीखते रहना चाहिए
नयी नयी जानकारी हासिल करना चाहिए
वह एक नौकरी पेशा ही नहीं जिम्मेदारी वाला हो
समाज उनको नौकर न समझे
अपने बच्चों का मार्गदर्शक समझे
अपनी सोच बदले
कारपोरेट जगत से कहीं ज्यादा महत्व उसका है
सम्मान का हकदार है
पेशे के प्रति ईमानदारी उसे भी बरतनी है
पैसे के लिए केवल
मजबूरी में
तब तो द्रोणाचार्य का हाल हो गया
एकलव्य का अंगूठा मांगना पडा
अश्वस्थामा को दूध के लिए मजबूर होने पर मित्र राजा दुपद्र का अपमान सहना पडा
हस्तिनापुर में बंध कर रहना पडा शर्तों में
केवल कौरव-पांडव को शिक्षा देंगे
उनके ज्ञान को बांधा गया
जिस युग में शिक्षक का हाल हो
उस युग में महाभारत तो होना ही था
द्रोणाचार्य उस छिद्र के समान थे जो कौरव-पांडव की पूरी नाँव ही डुबा दी
वैसे वह सब जान बूझ कर नहीं हुआ था पर हुआ तो था
जहाँ प्रतिभा की कदर नहीं
शिक्षक के प्रति सम्मान नहीं
तब उनके पढाये बच्चे
क्या सोचेगे
टीचर तो फटीचर होते हैं
यह जुमला सुन बडे होने वाले बच्चे
मजाक ही उडाएगे
यह हो रहा है दिख रहा है
ऐसी मानसिकता तो खतरनाक है
सोच को बदलना पडेगा
शिक्षक को अभिभावक को बच्चों को समाज को
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