Monday, 1 May 2023

वजूद सबका है

मेरे माता-पिता ने बडी मुश्किल से मुझे पाला है
बहुत त्याग किए हैं 
 सही है 
हर माता-पिता करते हैं 
अपनी संतान को अपनी हैसियत से ज्यादा देने की कोशिश करते हैं 
पढाते - लिखाते हैं 
खर्च करते हैं 
यह सब संतान के लिए करते हैं 
वह संतान बेटा हो या बेटी
आज के युग में फर्क नहीं पडता 
ब्याह में फर्क अब भी पडता है
ससुराल और मायके में अंतर अब भी होता है
बिना परमीशन के मायके जाएं बहु 
यह भारतीय मानसिकता बर्दाश्त नहीं कर सकती 
बेटी और बेटे का हक बराबर 
यह भी खलता है
कानून भले ही हो
मन अभी भी बना नहीं है
अंतर तो है ही
वह जाएंगा भी नहीं इतनी जल्दी 
समय तो लगेगा 
जडे इतनी गहरी जो हैं 
सदियों पुरानी 
जहाँ अपेक्षा त्याग की नारी से ही होती है 
बदलाव हो रहा है ऐसा नहीं 
बस चुनिंदा लोगों में 
शिक्षित हैं इसलिए नहीं 
सोच है इसलिए 
जो भी हो 
वजूद तो दोनों का है
इनमें अब कोई परमेश्वर और दासी का संबंध नहीं 
सात जन्मों का भी नहीं 
निभाना है तो इसी जन्म में 
नहीं तो तुम अपना रास्ता नापो मैं अपना 
परिवर्तन तो वक्त की मांग है
नहीं तो पुरुष प्रधान में पुरुष अकेला रह जाएंगा 
महत्ता तो स्वीकार करनी पड़ेगी
माँ की पत्नी की बहन की बेटी की 
परिवार के लिए 
समाज के लिए 
देश के लिए। 

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