बहुत कर लिया
हश्र क्या हुआ
कुछ भी नहीं
शून्य से शुरू हुआ सफर शून्य पर ही खत्म
इसके बीच की गिनती तो याद ही नहीं
कभी-कभी कुछ भूले - बिसरे मानस पटल पर आती है फिर भूला दी जाती है
उस समय गिनती कम पड जाती थी लगता था अभी बहुत कुछ बाकी है
जोडना - घटाना
गुणा - भाग
पहाड़े रटना
बीजगणितीय सवाल
रेखागणित के त्रिकोण और वर्तुलाकार
सब कुछ होता रहा समय समय पर
कहीं पास तो कहीं नापास भी हुए
कहीं कम अंक तो कहीं ज्यादा
ऐसे ही यह सिलसिला चलता रहा
अंत में सब शून्य में ही सिमटना है
शुरू शून्य से
खतम शून्य पर
इसके बीच की गिनती
वही जीवन
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