Saturday, 22 July 2023

नदी का असतित्व

नदी हमेशा समुंदर को ताका करती थी
यह इतना बडा इतना विशाल 
मुझे भी ऐसा ही बनना है
इससे मिलना ही है
वह चल पडी मिलने 
मिली तो समुंदर से
मिलकर वह , वह न रही
पता नहीं कहाँ खो गई
उसका असतित्व ही खतम 
मीठा पानी खारा बन गया
अब उसे कोई प्रणाम नहीं करता
उसमें कोई स्नान नहीं करता 
उसका पानी कोई नहीं पीता
अंजुरी में जल लेकर आचमन नहीं करता 
क्या थी और क्या हो गई
बडे बनने की लालसा में स्वयं ही खतम हो गई। 

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