अच्छा या बुरा
अच्छा वक्त को भी जीया
बुरे वक्त को भी जीया
कभी खुशी रही
कभी गम रहा
कभी ईश्वर को धन्यवाद
कभी ईश्वर से शिकायत
कभी जिंदगी को कोसा
कभी आनंद से फूले न समायी
पता नहीं चला
कैसे वक्त गुजरता गया
आज भी हालात जस के तस
कभी खुशी कभी गम
अब लगता है
सबको एक बडे से संदूक में बंद कर रख दो
जैसे सामान गद्दे और रजाई रखते हैं
इन पिटारों को खोलना नहीं है
समझ नहीं आता
जिंदगी इतनी उलझी हुई क्यों हैं
जलेबी की जैसी टेढी मेढी
चाशनी में डूबी हुई तो है मिठास लिए हुए
लेकिन साथ में नीम सी कडवाहट भी लिए हुए
जिंदगी जीना है
तब कडवा और मीठा दोनों को निगलने पडेगा ।
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