Friday, 28 July 2023

मांझी

बस बहुत हो गया 
हम थक गए हिचकोले खाते खाते
अब तो पार लगा दे मांझी
नैया तो कब से फंसी मझधार में 
हम तो खेते रहे 
किनारे जाने की कोशिश करते रहे 
बहुत हो गई देर अब 
अब न आशा न रही
न शक्ति रही
निराशा का अंधकार छाया हुआ 
कब और कैसे मिले किनारा ।

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