Friday 28 July 2023

जीवनदायिनी, विनाशिनी भी कभी-कभी

जीवन को जल चाहिए था
जिंदा रहने के लिए 
जल तो मिला 
खुशियों की रिमझिम बरसात हुई 
कब उसने अलग रूप ले लिया 
पता ही न चला
हमें लगा अमृत बरस रहा है
इसने तो जहर का रूप ले लिया 
सब तहस नहस कर डाला
कब रिमझिम से तडकती फडकती जानलेवा बिजली में परिवर्तित 
तूफानी रूप से बाढ आ गई 
लगा सब बहा ले जाएंगी 
अपने साथ विनाश लेकर आई
पता नहीं किन किनको बहा डाला
कितने घर उजाड़ दिए 
कितनी जिंदगियां तबाह कर दी
बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया
अब सब जगह कीचड़ ही कीचड़ 
जीवनदायिनी,  विनाशिनी बन गई
मोह तब भी छूटा नहीं 
यही तो मजबूरी है
जी नहीं सकते इसकी कृपा बिना
कृपा बरसाए यह उसकी मेहरबानी 
जरा प्रेम से सावधानी से
जितनी जरूरत है उससे ज्यादा नहीं 
ज्यादा से तो गमले का पौधा भी सड जाएंगा 
इंसान की बिसात कहाँ 
वह तो सबसे लाचार
प्रकृति की अनुकम्पा पर 

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