गिरी किसी कली पर
कोमल, नाजुक
जैसे ही सूर्य की किरणें पडी
वह सुनहरे रथ पर सवार आसमां को चली
ईष्या हुई उसके भाग्य पर
कली , लगी सोचने
जीवन इसका मुझसे भी कम
मैं तो आज खिलुगी
सुंदर सा पुष्प बन बगिया की शोभा बढाऊगी
लेकिन कल तो मुझे नष्ट होना है
माली आएगा और तोड़ ले जाएगा
पता नहीं ईश्वर के चरणों में जगह मिलेगी
या किसी के केशों में
या गुलदस्ते में
अंत तो कचरे के ढेर में ही
फिर मिट्टी में मिल खाद बनूँगी
उसी मिट्टी से फिर उपजूगी
नहीं करना मुझे आसमां की सैर
मैं धरती पर ही खुश हूँ
अपनी मिट्टी से जुड़ी तो हूँ ।
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