पौधे को खाद पानी देता रहा
सींचता रहा
पौधा बढता रहा
उस पर अब कली आने लगी
कली फूल बनने लगी
आते जाते सबके आकर्षण का केंद्र
माली किसी को पास फटकने न देता
फूल को देख लोग ललचाते
कोई तोड़कर भगवान को समर्पित करना चाहता
कोई सुगंध लेना चाहता
कोई दरवाजे पर का वंदनवार बनाना चाहता
कोई गजरे में गूथना चाहता
कोई प्रेमिका को भेंट देना चाहता
माली की दृष्टि तेज पकड़ मजबूत
फूल खिला और मुरझा गया
मुरझा कर जमीन पर गिर पडा
मिट्टी में मिल गया
जीते जी सोचता रहा
मैं किसी के काम न आ सका
बस पिंजरे में बंद रहा
अपने मन का कुछ कर न सका
बागबान ने इतना सुरक्षित घेरे में रखा
जीवन ही व्यर्थ हो गया
ऐसा प्रेम किस काम का
जो असतित्व को ही समाप्त कर दे
मुझसे तो अच्छा वह जंगल का फूल है
जो अपने आप खिलता है
अंधड- तूफान सहता है
हवा के हिचकोले भी लेता है
मन मर्जी चलती है उसकी ।
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