यह सब तब तक ठीक है जब तक किसी को आपत्ति न हो
कभी-कभी यह दोनों एक - दूसरे पर हावी होने लगते हैं
जबरदस्ती कराने लगते हैं
हमने यह भुगता है और कईयों के साथ ऐसा वाकया होता है
मेरी पहली नौकरी लगी थी केन्द्रीय विद्यालय में एढाक बेसिस पर वह इस कारण कि दो लोग का ट्रांसफर हुआ था उसमें एक जैन सर गणित के एक सिंह सर हिन्दी के
दोनों जिगरी दोस्त । हुआ क्या सिंह सर अपने मांस और हड्डी चूसने की बात और जैन सर मांस खाने वालों की बुराई
एक दिन दोनों बात करते करते सीढियों पर ही आपस में भीड़ गए , छात्रों ने छुडाया। सूद सर प्रिंसिपल थे उन्होंने कहा कि जो स्वयं लड रहे हैं वे बच्चों को क्या शिक्षा देंगे
दूसरा अनुभव लोकल ट्रेन का है दो सहेलियां बात करते करते विवाद कर बैठी
एक बोली दही खाते हैं न तो नानवेज है वह । इस बात पर दो गुट बन गए और बडे अरसे तक बात नहीं हुई ।
यह मेरा अपना अनुभव है । हमारे पडोसी गुजराती- मारवाड़ी हुए हैं ज्यादातर। हम नानवेज खाते थे पर छुपाकर
कभी भनक भी न लगने देते थे फिर भी सफाई कर्मचारी से पूछते थे । वह लिहाज था अन्यथा हम अपने घर में खाएं क्या फर्क पडता
जैन सोसायटी में फ्लैट लेने गए। बातचीत हो गई पर सरनेम देख मना कर दिया
ऊपर के फ्लोर पर एक बंगाली फैमिली रहती थी वे बेचारे दरवाजा भी खुला नहीं रख सकते थे
यहाँ तक कि बच्चों के साथ खेलना भी नहीं
इनकी मोनोपली चलती है मुंबई में तो यह आम बात है और किसी से छिपा नहीं है
अपना अपना कल्चर है
शाकाहारी को मांसाहारी से परहेज होगा यह स्वाभाविक है
उनको गंध आएगी , घृणा होगी
पर जबरदस्ती नहीं है न
कोई किसी को खिला तो नहीं रहा है न
एक - दूसरे के प्रति सहनशीलता रखनी पडेगी
एक ही घर में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों रहते हैं गाॅवो में तो चूल्हा और बरतन सब अलग होते हैं
खाने के बाद स्नान करें तो ही छू सकते हैं
सुधा मूर्ति जी का अपना नजरिया है अपनी इच्छा है
यह बात तो हर घर में देखी जाती है
जो नहीं खा रहा है तब वह इसे स्वीकार नहीं करेगा कि एक ही चम्मच या बर्तन उपयोग है
इसके बचाव के रास्ते हैं
जरूरत है बस थोडी-सी सावधानी और भावनाओं की कदर
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