सत्य क्या असत्य क्या
न्याय क्या अन्याय क्या
मन में विरोध भी
फिर भी बेबस और लाचार
कुछ नहीं कर सकती
लडना भी आता है
फिर भी लड नहीं सकती
कमजोर नहीं मैं बहुत मजबूत
जीवन के थपेडों को झेला है
असमर्थ नहीं समर्थ भी
इतना सब होते हुए भी चुप
उस बात पर चुप जो मुझे अनुचित लगता है
इसका कारण
मैं रिश्तों में बंधी मजबूर
यहाँ लगता है
मैं स्वतंत्र नहीं गुलाम हूँ
यह रिश्तों का कोमल धागा नहीं
बल्कि लोहे की मजबूत जंजीर है
इसने मुझे जकड़ रखा है
इस जंजीर को तोड़ पाना बहुत मुश्किल है
जब रिश्ता हावी होने लगे
दवाब डालने लगे
तब उसका यही हश्र
मजबूरी में बंधे रहो
तोड़ कर सब खत्म कर दो ।
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