जीवन कौन सी दिशा में जा रहा है
हम चाहते कुछ है
होता कुछ है
समझ नहीं आता हो क्या रहा है
हमारा तो कोई वश नहीं
वह तो ऊपर वाले पर हैं
वह न जाने क्या चाहता है
छोड दे उस पर
शायद हमसे अच्छा चाह रहा हो
उसके कुछ प्लान हो हमारे लिए
तकदीर का रचयिता
सारा लेखा - जोखा उसके पास
कर्मों और भाग्य का हिसाब वही करता है
फल भी वह ही देता है
उसके आगे किसी की नहीं चलती
जब भगवान की खुद के जीवन पर नहीं चली
राज्याभिषेक होने जा रहा था चौदह बरस का वन गमन मिल गया
माता-पिता बंदी और जेल में जन्म
जन्मते ही दूसरी जगह पहुंचा देना
जीवन देने वाले को स्वयं की जीवन रक्षा
हम तो सामान्य मनुष्य है
नियति के हाथों विवश है
नियति क्या खेल करवाएगी
कैसा नाच नचवाएगी
यह तो वो ही जाने
बस
हम अपना कर्म करें और सब उस पर छोड़ दे ।
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