होता नहीं कोई यहाँ अपना
अपना , अपने से दूर
दूर वाले अपने पास
किस को माने अपना
जो हमसे खुशी से मिले
जो हमारे सुख - दुख का सहभागी बने
जिसके सामने हम मन खोलकर रख सके
जिसके साथ हम जी भर कर खिलखिलाएं
मन भर कर रो ले
सोचना न पडे बोलने से पहले
अपनों के साथ होता उल्टा है
गैरो के साथ हम खुलकर जी लेते है
मिल जुलकर रह लेते हैं
अपनों के साथ घुट घुट कर रह जाते हैं
पराया मन न भाया तो छोड़ देते हैं
अपनों के साथ तो वह भी नहीं होता
मन बांध देता है हाथ को
वह कभी नहीं छूटता
अपनों के लिए जो भी करें वह कर्तव्य
दूसरों के लिए वह एहसान
कर्तव्य और एहसान के बीच का एहसास
हमें हमेशा उलझाए रहता है
जो इस उलझन से निकल गया
उसका जीवन सुलझ गया ।
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