दासत्व नहीं
प्रेम से झुकाया जा सकता है
जबरन नहीं
प्रेम किया जाता है
थोपा नहीं
मन एक ही होता है हजार नहीं
प्रेम गर्वित होता है घमंडी नहीं
प्रेम में स्वतंत्रता होती है
बंधन नहीं
प्रेम राधा और गोपियों ने किया था
गोकुल से मथुरा तो वह दौड़ती हुई जा सकती थी
मंजूर नहीं था उनको
स्वाभिमानी जो थीं
कृष्ण छोड़ कर गए थे वह नहीं
विरहणी बनी रहीं पर मथुरा नरेश से मिलने नहीं गई
न कृष्ण आए
उद्धव को भेजा समझाने के लिए
उद्धव को तो गोपियों ने ऐसा समझा दिया कि
उद्धव का सारा ज्ञान धरा का धरा रह गया
बृज की रज भी होता तो भाग्यशाली होता
प्रेम दोनों तरफ से था
ऐसा प्रेम जो ह्रदय से था
दुरियां भले थी प्रेम ने बांध रखा था
प्रेम अधिकार मांगता है
प्रेम , प्रेम को बांध रखता है
बहुत नाजुक और कोमल बंधन है
निभाने पर आ जाओ तो जन्म - जन्मांतर का बंधन
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